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… ये हवायें

10 Feb

ना ले इनसे कोई दूर मंज़िल तक चलने का वादा
क्यूंकि, ना तो इनका कोई मुक़ाम है, ना ही इन पर कोई लगाम है
हर राह से अनजान, हर ओर उड़ाएँगी तुझे
… ये हवायें

ना कर कोई इक रंग की ख़्वाहिश
क्यूंकि, इनमें हर रंग होगा
दूर नील गगन होगा, तो कभी लालिंमा छटा होगी; तो कभी काली घटा भी होगी
कभी होगा लाल, तो कभी पूरा नीला, कभी साफ़ सफ़ेद तो कभी पूरा रंगीला
उड़ाएँगी हर रंग तुझपे
… ये हवायें

काहे को पत्थर बने है, और इन हवाओं से तुझ संग उड़ने की आस लिए है
ग़र है मोहब्‍बत तो; तोड़ दे डोर और उड़ जा पतंग के जैसे..
वार दे अपने को इन चंचल हवाओं पे कुछ ऐसे
सारे जहाँ की सैर कराएँगी तुझे
… ये हवायें

यदि रुख बदलेंगी तो; तो पतंग को भी बहा ले जायेंगी संग अपने
ना डोर बांधेंगी; ना डोर छोड़ेंगी
कुछ इस तरह इश्क़ फ़रमाएंगी
… ये हवायें

 
3 Comments

Posted by on February 10, 2014 in Random Thoughts..

 

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3 responses to “… ये हवायें

  1. Surbhi

    February 14, 2014 at 3:54 pm

    That’s Beautiful

     
    • 4th Idiot !!

      February 15, 2014 at 1:49 am

      Thank you Sur 🙂

       
  2. Rewa Smriti

    February 26, 2014 at 7:18 am

    Nice Rahul 🙂

     

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