ना ले इनसे कोई दूर मंज़िल तक चलने का वादा
क्यूंकि, ना तो इनका कोई मुक़ाम है, ना ही इन पर कोई लगाम है
हर राह से अनजान, हर ओर उड़ाएँगी तुझे
… ये हवायें
ना कर कोई इक रंग की ख़्वाहिश
क्यूंकि, इनमें हर रंग होगा
दूर नील गगन होगा, तो कभी लालिंमा छटा होगी; तो कभी काली घटा भी होगी
कभी होगा लाल, तो कभी पूरा नीला, कभी साफ़ सफ़ेद तो कभी पूरा रंगीला
उड़ाएँगी हर रंग तुझपे
… ये हवायें
काहे को पत्थर बने है, और इन हवाओं से तुझ संग उड़ने की आस लिए है
ग़र है मोहब्बत तो; तोड़ दे डोर और उड़ जा पतंग के जैसे..
वार दे अपने को इन चंचल हवाओं पे कुछ ऐसे
सारे जहाँ की सैर कराएँगी तुझे
… ये हवायें
यदि रुख बदलेंगी तो; तो पतंग को भी बहा ले जायेंगी संग अपने
ना डोर बांधेंगी; ना डोर छोड़ेंगी
कुछ इस तरह इश्क़ फ़रमाएंगी
… ये हवायें
Surbhi
February 14, 2014 at 3:54 pm
That’s Beautiful
4th Idiot !!
February 15, 2014 at 1:49 am
Thank you Sur 🙂
Rewa Smriti
February 26, 2014 at 7:18 am
Nice Rahul 🙂